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राजनैतिक दलाल/भक्त –
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राजनैतिक दलालों और भक्तों में बस इतना अंतर रह जाता है कि भक्तों को सारी जानकारी राजनैतिक दलालों के माध्यम से ही मिलती है जिसे भक्त अपनी स्वयं की खोज मान लेते है।
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राजनैतिक दलाल भी भक्त ही होते है, लेकिन आर्थिक फायदों के साथ।
भक्त भी राजनैतिक दलाल होते है लेकिन राजनैतिक और धार्मिक क्रिया-प्रतिक्रियाओं की मूढ़ताओं के साथ।
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यदि आप राजनैतिक दलाल है तो आपको अपने मालिक की खिदमत में नए नए भक्त बना कर लाने होंगे उसके लिए कुछ चीजे मदद कर सकती है जैसे की लोगों के दैनिक परेशानियों को ह्यूमर बना कर पेश करना, बचपन की यादों में लेकर जाना , विपक्षी पार्टियों पर चटुकले बनाना । इन सब से काफी लोग जुट जाते है लेकिन आगे बढ़ने के लिए अब धर्म खतरे में है की पट्टी पढ़ाना शुरू कर दो, दुनिया के जिस कोने से नफरत भुना सकते हो भुना लो, तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करो, लोगों को बताओ की इतिहास सही नहीं लिखा हुआ उसे अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ के लोगों को बताओं। बीच में दो चार बाते , लेख मालिक जी भी भिजवाते रहेंगे। जब यह सब हो जाए लोगों की वाह वाही मिलने लगे तब दुनिया की सब समस्याओं का हल आपके मालिक है ही , मालिक जी कभी गलती नहीं करते, मालिक जी सर्वे सर्वा है ही। इसी प्रोसेस को अनन्त काल तक दोहराते रहे।
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सबसे क्यूट वो राजनैतिक दलाल है, जो कहते है भक्त बनना अच्छी बात है। सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया तक; आस पास के गलियारों से लेकर राजनैतिक पार्टियों तक खूब मिलते है। मजे की बात ये है की इन दलालों के भी भक्त होते है।
Nishant Rana
Social thinker, writer and journalist.
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.