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आदम – गुरु विकास की बात कर रहे हो, चक्कर क्या है !
देवरस – चक्कर क्या होता , कर भी देंगे विकास के काम।
आदम – फिर चिंता क्यों झलक रही चेहरे पर सब तो चौकस है ।
देवरस – सत्ता के लिए भौतिक सुखों का त्याग तक हमें करना पड़ा। इतनी दयालुता है हमारे मन में की कोई दरबार से खाली हाथ न गया , सभी धर्मों के लोग हाथ जोड़ कर खड़े रहते है हम भी सबको सम्मान देते है । तुम तो सब जानते ही हो ।
आदम – इसमें दिक्कत क्या है ।
देवरस – लेकिन कुछ लोग हमारा विरोध भी कर रहे, राज द्रोह कर रहे , परम्पराएँ तोडना चाहते है, हमारी बराबरी करना चाहते है। देखते नहीं इतने महान , प्रतापी, दानी , दयालु राजा के होते हुए कोई सामने से आए क्या यह ठीक है !
आदम – चिंता मत करिए गुरु जनता आपको ही दोबारा चुनेगी।
देवरस – बस यहीं पर ही दिक्कत है , हम राजा है एक बार राजगद्दी पर बैठ गए तो फिर कोई कौन होता है हमें चुनने वाला न चुनने वाला। प्रजातंत्र के नाम पर क्या किसी भी ऐरे गैरे को सत्ता दे दे।
आदम – लेकिन नियम तो यही है जैसा जनता जनार्दन आदेश कर दे उसका सम्मान करना होता है।
देवरस – तुम्हे समझ क्यों नहीं आता की बराबरी के सिवा हमें सब बर्दाश्त है। सेना, समर्थक तो हमार पासे भी बहुत है तो बस कोई सामने से आ ही ना सके उसके लिए यहीं नियम बदलना चाहते है। लोगों को आजादी की जिम्मेदारी से गुलामी का सुख ज्यादा अच्छा लगता है। तुम देखना हम जनता तक को इसके लिए मना लेंगे।



Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance. 

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