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जला देना हर एक उस पेड़ को
जो तुम्हारे कहने से मनचाहा फल न दे।
भाप बना कर उड़ा देना हर वो नदी
जो तुम्हारे कहने पर दिशा न बदले।
भून देना हर एक उस पंछी को , पशु को 
जो तुम्हारे तलुए न चाटे,
जो दुम हिला के हाजिर न हो तुम्हारी
एक आवाज पर।
जहर घोल देना उस हर हवा में जो तुम कहो
पूरब और पच्छिम को चलें।
कतरा कतरा कर देना किताब के
हर उस पन्ने का
जो हर्फ़ दर हर्फ़ वो न कहती हो
जो तुम सुनना चाहों।
तलवार, कट्टे , लाठी, छुरी
सब हथियारों से लैस होकर चलते रहो।
और मारते रहो हर एक उस आदमी को
जो जरा सा भी असहमत हो तुमसे।
तब तक मत रुकना जब तक धरती से
आखिरी आदमी खत्म न हो जाए,
हवस मिट न जाए अपनी हर बात
सही साबित करने की।
धरती को जरूरत भी नहीं इंसानों की।


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance. 

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